दो धागों से
पतंग जीवन की
उड़ाए जा !
प्रेम का हिचका और
स्नैह की डौर से
दूर गगन लहराएं जाँ
घूप छाँव सें भरे
ये दिन हेँ
ठंडी रातों मेँ
पल को बिताये जां
आस विश्वास कें -----
मुक्त गगन हे
मुक्त चमन हें
मुक्त हो रहा
मुक्त यें वक़्त हैं
मुक्त होके तुं
इस जीवन मेँ
पतंग अपनी
उड़ाए जा !
आस विश्वास के -----
No comments:
Post a Comment