संगीत - जीवन का सौन्दर्य एवं आनन्द
मनुष्य प्राचीनकाल से संगीत प्रेमी रहा हैं। संगीत नीरस जीवन को सरस बना देता हैं। पत्थरो में जान डाल देता हैं। अंधकार में प्रकाश भर देता हैं।
मनरूपी पंछी को उन्मुक्त गगन की ऊचाइयां छूने को मजबूर कर देता हैं।
संगीत का मनुष्य से गहरा सम्बन्ध हैं। यहाँ तक कि संगीत जन्म से मृत्यु तक की यात्रा में हमारे साथ रहता हैं। चाहे नवजात शिशु के जन्म का उत्सव हो
या उसे ममतामयी माँ के द्वारा लोरियाँ गाकर सुलाना हो। विद्यालय में
सांस्कृतिक कार्यकम हो या फिर प्रार्थना ,घर में कोई तीज त्यौहार ,विवाह हो संगीत सब जगह साथ होता हैं।
संगीत एक जीवंत कला है। यह नाद ऊर्जा पर आधारित हैं। इसकी तरंगे ह्रदय को छूती हैं। इनका प्रभाव समस्त प्राणियों ,पेड़ -पौधों पर तो पड़ता है ,जड़ पदार्थो पर भी पड़ता हैं।
सभी कलाओं में सर्वश्रेष्ठ कला संगीत ही हैं। यह इसलिए क्योकि इसका माध्यम नाद अति सूक्ष्म होता है परन्तु इसका प्रभाव व्यापक होता हैं,नाद मधुर एवं कर्णप्रिय ध्वनि होती हैं।
संगीत वह ललित कला है जिसमें स्वर और लय के माध्यम से हम अपने भावों को प्रकट करते हैं। गायन ,वादन ,नृत्य तीनों ही संगीत के रूप हैं।
सम्पूर्ण जगत का आधार ॐ (ओम ) है जो कि एक नादात्मक ध्वनि हैं। इसका अर्थ हे कि सृष्टि में निरंतर जो घट रहा है उसमें संगीत की भी मुख्य भूमिका रहती हैं। चाहे सृष्टि के सृजन का समय हो या फिर इसके विनाश का ताँडव ,चाहे हर्ष और उल्लास का वातावरण हो या फिर युद्द द्वारा महाविनाश की दुन्दुभि। कहते हैं अयोध्या,किष्किन्धा और लंका सदैव संगीत की ध्वनियों से गुंजायवान रहती थी।
संगीत में इतनी शक्ति है कि वह हर तरह के रोगी को निरोगी बना देता हैं।
वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह सिद्ध हो चुका हे कि अनेक रोगों का का उपचार अलग अलग रागो द्वारा किया जा सकता हैं।
हमें ईश्वर के निकट ले जाने का यह सबसे सरल माध्यम हैं। तभी तो
सुर,मीरा,तुलसी एवं सूफी संतो ने भक्ति संगीत के माध्यम से अपने ईश की वंदना कर उन्हें अपने समीप पाया। उन्होंने जन सामान्य को भी इसे अपनाने की सलाह दी।
संगीत सभी के लिए उपयोगी हैं। यह हर एक की उन्नति एवं विकास में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सहयोगी हैं। यह न केवल हम सबका मनोरंजन करता है बल्कि यह हमें मानसिक ऊर्जा से ओतप्रोत कर देता हैं। तन मन को ताजगी से भर देता हैं।